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Saturday, July 12

Motivational Story | Story -२







|| Motivational Story || 

ठान लो तो जीत पक्की 


 विवेक एक ऐसा छात्र था जो अपनी कक्षा में अक्सर सबसे पीछे बैठता था। उसका चेहरा हमेशा चुप और आँखों में एक अजीब सी थकावट रहती थी। उसके पास न नया बैग था, न किताबें, न ठीक से लिखने वाला पेन। कई बार अध्यापक उसे डाँट देते, सहपाठी हँसी उड़ाते, लेकिन वह सब सहकर भी हर दिन स्कूल आता रहा।


वह पेन जो वह रोज़ इस्तेमाल करता था, दरअसल आधा टूटा हुआ था। कभी-कभी लिखता, कभी नहीं। लेकिन उसी पेन से वह अपने सपनों को जोड़ता जा रहा था। घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि माँ को चाय तक नसीब नहीं होती थी, ताकि बेटा स्कूल जा सके। विवेक ने कभी शिकायत नहीं की। लेकिन एक दिन जब अध्यापक ने सबके सामने उसे डाँटा और कहा, “तुम्हें कुछ नहीं बनना है ज़िंदगी में,” तो विवेक का दिल टूट गया।


वह शाम को घर आया और माँ से बोला, “माँ, अब नहीं पढ़ूंगा। सब मुझे नीचा दिखाते हैं। मेरे पास कुछ नहीं है।” माँ ने कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप उठी, उसका टूटा हुआ पेन उठाया और बोली, “बेटा, ये पेन भले टूटा है, पर इसकी स्याही अभी भी बाकी है। ठीक वैसे ही जैसे तू खुद को टूटा समझता है, लेकिन तेरे अंदर अब भी मेहनत और हौसला बाकी है।”


विवेक माँ की बात सुनकर अंदर से हिल गया। उसी रात उसने खुद से वादा किया कि वह अब हार नहीं मानेगा। अगले दिन से उसने पुरानी किताबें माँगकर पढ़ना शुरू किया, जो भी पन्ना मिलता उसमें नोट्स बनाता। स्कूल से लौटने के बाद दूसरों के जूते पॉलिश करता और रात को स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करता। उसके पास न समय की कमी थी, न हिम्मत की।


धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। वह हर विषय में बेहतर होता गया। और जब बोर्ड परीक्षा का परिणाम आया, तो सब हैरान रह गए। विवेक ने जिले में टॉप किया था। वही छात्र जिसे कोई जानना नहीं चाहता था, अब अख़बारों की सुर्ख़ियों में था। स्कूल में तालियाँ बज रही थीं, और उसकी माँ की आँखों में गर्व के आँसू थे।


आज विवेक एक अधिकारी है, लेकिन उसकी मेज पर अब भी एक टूटा हुआ पेन रखा है – एक याद के रूप में। वह पेन उसे हर दिन याद दिलाता है कि हालत चाहे जैसे भी हों, अगर भीतर स्याही बाकी है – यानी अगर हिम्मत बाकी है – तो कुछ भी असंभव नहीं।


यह कहानी हमें सिखाती है कि जब तक हम हार नहीं मानते, तब तक कोई भी हालात हमें हरा नहीं सकते। बस ज़रूरत है खुद पर विश्वास करने की, और उस टूटी चीज़ में भी अवसर देखने की।



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