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Monday, August 4

पैर खोने के बाद भी माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला

अरुणिमा सिन्हा: पैर खोने के बाद भी माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला






भूमिका

अगर आपसे कोई कहे कि एक लड़की, जो एक ट्रेन दुर्घटना में अपना एक पैर खो बैठी, वह कुछ ही सालों बाद माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराएगी — तो क्या आप यकीन करेंगे?
लेकिन यह कहानी है अरुणिमा सिन्हा की — जो बताती है कि मानव इच्छा शक्ति किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है।


 प्रारंभिक जीवन

अरुणिमा सिन्हा का जन्म उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर ज़िले में हुआ था। वह एक साधारण परिवार से थीं और नेशनल वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं। उनका सपना था कि वह देश के लिए खेलें और नाम कमाएँ।

लेकिन किस्मत ने उन्हें एक ऐसी राह पर धकेल दिया, जहाँ से ज़िंदगी खत्म सी लग रही थी… पर वहीं से एक नई शुरुआत हुई।


दुर्घटना जिसने ज़िंदगी बदल दी

वर्ष 2011 में अरुणिमा एक परीक्षा देने के लिए लखनऊ से दिल्ली जा रही थीं, जब कुछ लुटेरों ने ट्रेन में उनसे ज़बरदस्ती चेन और बैग छीनने की कोशिश की।

जब उन्होंने विरोध किया, तो उन बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से फेंक दिया

वह एक अन्य पटरी पर गिरीं और उसी वक्त एक ट्रेन उनके पैर के ऊपर से गुजर गई।
उनका बायां पैर कट गया और वो घंटों तक रेलवे ट्रैक पर पड़ी रहीं।


 संघर्ष का आरंभ

अरुणिमा को पहले एक लोकल अस्पताल में ले जाया गया, जहाँ इलाज की हालत बेहद खराब थी। बाद में उन्हें AIIMS दिल्ली लाया गया, जहाँ उनका पैर पूरी तरह काटकर कृत्रिम पैर (artificial limb) लगाया गया।

बहुत से लोग उनके साथ सहानुभूति जताने लगे — लेकिन अरुणिमा को सहानुभूति नहीं चाहिए थी, उड़ान भरने की आज़ादी चाहिए थी।

वह कहती हैं:

“लोग कहते थे अब ये लड़की क्या कर पाएगी… मैंने सोच लिया कि अब ऐसा काम करूंगी कि सबकी सोच बदल जाएगी।”


माउंट एवरेस्ट का सपना

अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे ही अरुणिमा ने तय कर लिया था कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ेंगी।

लोगों को यह सपना पागलपन लगा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने भारतीय पर्वतारोही बछेंद्री पाल (एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला) से संपर्क किया और पर्वतारोहण की ट्रेनिंग लेने लगीं।


 कठिनाइयाँ और तैयारी

पर्वतारोहण करना आसान नहीं था। वह भी कृत्रिम पैर के साथ
हजारों फीट की ऊँचाई, बर्फ, ऑक्सीजन की कमी और जान का जोखिम — लेकिन अरुणिमा ने हर कठिनाई को हिम्मत और धैर्य से पार किया।

उन्होंने टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में ट्रेनिंग की और अपने कोचों की मदद से दिन-रात अभ्यास किया।


 इतिहास रचने वाला दिन

21 मई 2013 को अरुणिमा सिन्हा ने वो कर दिखाया जो शायद ही किसी ने सोचा था।
उन्होंने माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) पर चढ़ाई पूरी की और भारत का तिरंगा लहराया

वह बनीं –
पहली महिला दिव्यांग
और पहली भारतीय विकलांग पर्वतारोही,
जिन्होंने एवरेस्ट फतह किया।


 इसके बाद की प्रेरणादायक यात्रा

एवरेस्ट के बाद अरुणिमा रुकी नहींं। उन्होंने आगे जाकर:

  • किलीमंजारो (अफ्रीका)
  • एल्ब्रुस (रूस)
  • कोसियस्ज़को (ऑस्ट्रेलिया)
  • अकोंकागुआ (साउथ अमेरिका) जैसी ऊँचाइयों को भी फतह किया।

उन्होंने एक किताब भी लिखी —
"Born Again on the Mountain"

भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया।


 जीवन से मिलने वाली प्रेरणा

अरुणिमा की कहानी बताती है:

  1. शारीरिक कमी, मानसिक ताकत के सामने कुछ नहीं।
  2. कठिनाइयाँ हमें रोकने नहीं, मज़बूत बनाने आती हैं।
  3. अगर सपना बड़ा है, तो मेहनत भी बड़ी होनी चाहिए।
  4. हार को मंज़िल मत मानो, सीढ़ी बनाओ।

 निष्कर्ष

अरुणिमा सिन्हा की कहानी केवल एक पर्वतारोही की नहीं है — यह कहानी है संघर्ष, आत्मविश्वास, और अडिग हौसले की।

"मैं वो तूफ़ान हूं जो अकेले आया था, और सबको हिला कर रख दिया।"अरुणिमा सिन्हा



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