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Tuesday, July 8

जो कभी नहीं रुकी: पढ़िए मैरी कॉम की Real Life Journey


🥊 मैरी कॉम – छोटी सी जगह से ओलंपिक तक की असली प्रेरणा


🔶 भूमिका

भारत के छोटे-से राज्य मणिपुर की एक लड़की, जिसने न तो बड़े-बड़े संसाधन देखे थे और न ही कोई विशेष सुविधा।
फिर भी उसने अपनी मेहनत और जुनून से वो कर दिखाया जो शायद किसी ने सोचा भी नहीं था।

मैरी कॉम—सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हिम्मत, लगन और संघर्ष की मिसाल है।
एक ऐसी महिला जिसने ना सिर्फ छह बार वर्ल्ड चैंपियन बनकर इतिहास रचा, बल्कि यह साबित किया कि

"अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई सपना असंभव नहीं होता।"


🔶 जन्म और बचपन

मैरी कॉम का असली नाम है मंगते चुंगनेइजैंग मैरी कॉम
उनका जन्म 24 नवंबर 1982 को मणिपुर के एक छोटे से गाँव कांगथेई में हुआ।

उनके पिता मगते तोंपा कोम एक साधारण किसान थे और खेतों में काम करके परिवार का पेट पालते थे।

मैरी कॉम बचपन से ही मेहनती और जिद्दी स्वभाव की थीं।
वह पढ़ाई में ठीक-ठाक थीं, लेकिन खेलों में उनकी रुचि विशेष थी।
वो पहले एथलेटिक्स (दौड़) में हिस्सा लेती थीं और फिर बाद में बॉक्सिंग की ओर आकर्षित हुईं।


🔶 बॉक्सिंग की शुरुआत

मैरी कॉम को बॉक्सिंग की प्रेरणा मणिपुर के प्रसिद्ध बॉक्सर डिंगको सिंह से मिली, जिन्होंने 1998 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था।

उस समय महिला बॉक्सिंग भारत में ज़्यादा लोकप्रिय नहीं थी।
न तो ट्रेनिंग के संसाधन थे, न ही लड़कियों को बॉक्सिंग के लिए बढ़ावा मिलता था।

मैरी ने छिपकर बॉक्सिंग की ट्रेनिंग शुरू की।
उनके माता-पिता को शुरू में यह पसंद नहीं आया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि बेटी लड़ने-झगड़ने वाला खेल खेले।

लेकिन मैरी कॉम ने हार नहीं मानी।


🔶 शुरुआती संघर्ष

उनके पास जूतों के लिए पैसे नहीं थे, पंचिंग बैग फटे हुए थे, डाइट का ध्यान नहीं, कोचिंग का ठिकाना नहीं — फिर भी वो रोज़ कई किलोमीटर पैदल चलकर ट्रेनिंग करने जाती थीं।

उन्होंने मणिपुर के केशोर सिंह से ट्रेनिंग लेना शुरू किया, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और गाइड किया।

उनकी मेहनत रंग लाई — जल्द ही उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जीत दर्ज करनी शुरू कर दी।


🔶 अंतरराष्ट्रीय पहचान

2000 में मैरी कॉम ने पहली बार भारत के लिए इंटरनेशनल चैंपियनशिप खेली और रजत पदक जीता।
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

2002 में उन्होंने वर्ल्ड वीमेंस बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता।
यही नहीं, इसके बाद वे लगातार पाँच बार विश्व चैंपियन बनीं —
2002, 2005, 2006, 2008, और 2010 में।

हर बार उन्होंने अलग-अलग विरोधियों को हराया, अलग-अलग देशों में, और हर बार भारत का नाम रोशन किया।


🔶 शादी और माँ बनना

मैरी कॉम की शादी 2005 में उनके दोस्त के ओंलेर कॉम से हुई।
शादी के बाद उन्होंने दो जुड़वाँ बेटों को जन्म दिया।

यहाँ तक कि उन्होंने कुछ समय बॉक्सिंग से ब्रेक ले लिया।
लोगों ने कहा – "अब उनका करियर खत्म।"

लेकिन उन्होंने साबित किया कि

"माँ बनना कमजोरी नहीं, ताकत है।"

2010 में उन्होंने वापसी की और फिर से विश्व चैंपियन बन गईं।


🔶 ओलंपिक में इतिहास

2012 लंदन ओलंपिक में पहली बार महिला बॉक्सिंग को शामिल किया गया।
भारत की तरफ से क्वालिफाई करने वाली अकेली महिला बॉक्सर थीं मैरी कॉम

इस बड़े मंच पर उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और कांस्य पदक (Bronze Medal) जीता।

यह भारत के खेल इतिहास का ऐतिहासिक पल था।


🔶 पुरस्कार और सम्मान

उनकी मेहनत और उपलब्धियों को भारत सरकार ने भी पहचाना। उन्हें मिला:

  • 🏅 अर्जुन अवार्ड (2003)
  • 🏅 राजीव गांधी खेल रत्न (2009)
  • 🏅 पद्मश्री (2010)
  • 🏅 पद्म भूषण (2013)
  • 🏅 पद्म विभूषण (2020)

🔶 “मैरी कॉम” फिल्म

2014 में ‘मैरी कॉम’ पर आधारित एक फिल्म बनी, जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने उनका किरदार निभाया।
इस फिल्म ने ना सिर्फ उनकी संघर्ष-गाथा को हर कोने में पहुँचाया, बल्कि लाखों लड़कियों को बॉक्सिंग में आने की प्रेरणा दी।


🔶 मैरी कॉम की सोच और संवाद

उनकी कुछ प्रेरणादायक बातें:

"मैं कभी हार नहीं मानती। चाहे कितना भी बड़ा मंच हो, मैं खुद पर भरोसा रखती हूं।"

"माँ बनना मेरी ताकत है, मेरी कमजोरी नहीं।"

"अगर एक गरीब किसान की बेटी वर्ल्ड चैंपियन बन सकती है, तो कोई भी बन सकता है।"


🔶 राजनीति और समाज सेवा

2016 में मैरी कॉम को राज्यसभा के लिए नामित किया गया
वह युवाओं, खासकर लड़कियों के लिए मोटिवेशनल आइकन बन चुकी थीं।

उन्होंने बॉक्सिंग एकेडमी भी खोली, जहाँ वह ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण देती हैं।


🔶 हाल की उपलब्धियाँ

  • 2018 में उन्होंने छठा विश्व चैंपियनशिप गोल्ड मेडल जीता।
  • उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।
  • आज भी वह खेल और समाज के बीच एक पुल बनकर नई पीढ़ी को प्रेरणा दे रही हैं।

🔶 निष्कर्ष

मैरी कॉम की कहानी किसी फेयरीटेल या फिल्म की तरह लगती है, लेकिन ये एक सच्चाई है — एक शून्य से शिखर तक की यात्रा

उन्होंने ये साबित किया है कि:

🌟 “छोटे शहर का होना कमजोरी नहीं, हौसलों की ऊँचाई होती है।”
🌟 “असली ताकत जीतने में नहीं, हर हार से उबरने में है।”



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